लॉकडाउन का असर

लॉकडाउन का गांव शहर और पर्यावरण पर कैसा असर रहा.

लॉकडाउन का अनुभव हर किसी के लिए अलग रहा हमने महामारी का भी अनुभव किया. और अपनों का क्या महत्व है वो भी अनुभव किया. ऐसी महामारी जो लोगों को दूर भी ले जाती है और कहीं ना कहीं पास भी लाती है.कुछ लोग शहर से दूर अपनी मिट्टी यानी गांव लौटे लेकिन शहरवासी ऐसा नहीं कर पाए.

लॉकडाउन में समस्याएँ

सभी ने जीवन में पहली बार लॉकडाउन का अनुभव किया. दंगों या दो समुदायों की झड़प के दौरान कर्फ्यू का तो अनुभव था लेकिन इस तरह के कर्फ्यू की कल्पना हमने कभी नहीं की थी. भारत जैसे विशाल देश में एकाएक लॉकडाउन हो जाना अभूतपूर्व और अप्रत्याशित था. देश की इतनी बड़ी आबादी को घरों, फ्लैटों, मकानों और झुग्गियों में रहने के लिए कहना और उसका पालन कराना चुनौती भरा काम था. हमें भी प्रोफेशनल काम के अलावा घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. लॉकडाउन की ऐसी सख्ती कि सुबह अखबार आने बंद हो गए. सुबह जब आंख खुलती तो अहसास होता कि दफ्तर तो जाना नहीं है लेकिन काम करना है और वह भी घर पर रहकर. परिवार के साथ घर पर रहकर काम करना एक चुनौती भी है.घर से काम करने पर यह भी अहसास होता था कि काम के प्रति कोई कमी ना रह जाए.


प्रकति का दृश्य

सुबह की शुरूआत टीवी न्यूज और मोबाइल पर खबरें पढ़ने से होती और फिर बालकनी में जा-जाकर यह देखने में लगे रहते कि सड़क से कौन पार हो रहा है. आम तौर पर गाड़ियों का शोर घर के अंदर रहते हुए भी सुना जाता था लेकिन तालाबंदी में गाड़ी का शोर, सब्जी बेचने वाले की आवाज, फेरी लगाने वाले के अजब-गजब तरीके हमसे कहीं दूर चले गए थे. शहरों का यह सन्नाटा अजीब सा था. घर में रहकर और काम करते हुए दिन इसी उम्मीद के साथ गुजर जाता कि आज का सूरज डूबेगा और कल एक नई सुबह होगी. शाम होते ही अन्य लोगों की तरह हम लोग भी घर की छत पर चले जाते और वहीं डूबते सूरज को देखते और बस देखते ही रहते. सूरज बिलकुल स्थिर दिखता है लॉकडाउन के वक्त की तरह. आसमान का नीलापन दिन भर की उबासी को दूर देता. निर्माण बंद होने और फैक्ट्रियां बंद होने से हवा भी अच्छी होने लगी.

गाँव मे लॉकडाउन की स्थिति

लॉकडाउन के दौरान बड़ी आबादी गांवों की तरफ लौटी मुसीबत के समय गांव की मिट्टी अपनो के पास खींच ले गई
बहुत समय बाद लोगो ने अपनो के साथ को अनुभव किया साथ बैठ कर टीवी देखना, नए-नए पकवान बनाना,अपनों के साथ समय व्यतित करना,बच्चो को गाँव की मिट्टी से जोड़ना।

गांवों में भले ही कच्चे-पक्के मकान हैं लेकिन वहां आपको जानने वाला दूर-दूर तक है और आप भी उन्हें जानते हैं. गांवों में रोजगार और शिक्षा के अवसर कम होने की वजह से ही लोग शहरों में पलायन कर जाते हैं. शहरों की ही तरह गांवों में रोजगार और शिक्षा के बेहतर अवसर मुहैया होंगे तो शहर और गांव के बीच का फासला कम हो जाएगा


लॉकडाउन

शहरो में लॉकडाउन गांव की तुलना में बिल्कुल ही अलग रहा। शहरो में फ्लैट या छोटे छोटे मकानों में ज़िन्दगी सिमट के रह गयी। बालकनी या छत से खाली सड़को तक ही सफर रहा। दैनिक जीवन के लिए जो जरूरी चीज़े थी वो भी नही मिल पा रही थी।






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