लॉकडाउन का गांव शहर और पर्यावरण पर कैसा असर रहा.
लॉकडाउन में समस्याएँ
सभी ने जीवन में पहली बार लॉकडाउन का अनुभव किया. दंगों या दो समुदायों की झड़प के दौरान कर्फ्यू का तो अनुभव था लेकिन इस तरह के कर्फ्यू की कल्पना हमने कभी नहीं की थी. भारत जैसे विशाल देश में एकाएक लॉकडाउन हो जाना अभूतपूर्व और अप्रत्याशित था. देश की इतनी बड़ी आबादी को घरों, फ्लैटों, मकानों और झुग्गियों में रहने के लिए कहना और उसका पालन कराना चुनौती भरा काम था. हमें भी प्रोफेशनल काम के अलावा घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. लॉकडाउन की ऐसी सख्ती कि सुबह अखबार आने बंद हो गए. सुबह जब आंख खुलती तो अहसास होता कि दफ्तर तो जाना नहीं है लेकिन काम करना है और वह भी घर पर रहकर. परिवार के साथ घर पर रहकर काम करना एक चुनौती भी है.घर से काम करने पर यह भी अहसास होता था कि काम के प्रति कोई कमी ना रह जाए.
प्रकति का दृश्य
गाँव मे लॉकडाउन की स्थिति
गांवों में भले ही कच्चे-पक्के मकान हैं लेकिन वहां आपको जानने वाला दूर-दूर तक है और आप भी उन्हें जानते हैं. गांवों में रोजगार और शिक्षा के अवसर कम होने की वजह से ही लोग शहरों में पलायन कर जाते हैं. शहरों की ही तरह गांवों में रोजगार और शिक्षा के बेहतर अवसर मुहैया होंगे तो शहर और गांव के बीच का फासला कम हो जाएगा
शहरो में लॉकडाउन की स्थिति
शहरो में लॉकडाउन गांव की तुलना में बिल्कुल ही अलग रहा। शहरो में फ्लैट या छोटे छोटे मकानों में ज़िन्दगी सिमट के रह गयी। बालकनी या छत से खाली सड़को तक ही सफर रहा। दैनिक जीवन के लिए जो जरूरी चीज़े थी वो भी नही मिल पा रही थी।
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